सूत्र :स्थिरसुखमासनम् II3/34
सूत्र संख्या :34
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : स्थिर होने पर जो सुख का साधन हो, उसी का नाम आसन, जैसे- स्वास्तिका (पालिकी) आदि स्थिर होने पर सुख के साधन होते हैं, तो उनको भी आसन कह सकते हैं। किसी विशेष पदार्थ का नाम आसन नहीं है। अब स्वकर्म का लक्षण कहते हैं-