सूत्र :निरोधश्छर्दिविधारणाभ्याम् II3/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : छदिं (वमन) और विधारण (त्याग) अर्थात् प्राण का पूरक, रेचक, और कुम्भक से निरोध (वश में रखने) को धारण कहते हैं। यद्यपि आचार्य ने धारध शब्द का उच्चारण इस सूत्र में नहीं किया हैं। तथापि आगे के दो सूत्रों में आसन और स्वकर्म का लक्षण किया है। इसी परिशेष से धारणा शब्द का अध्याहार इस सूत्र में कर लिया जाता है जैसे-पाणिनि मुनि ने भी लाघव के वास्ते ‘‘लृट्, शेषे च’’ इत्यादि सूत्र कहे हैं। अब आसन का लक्षण कहते हैं-