सूत्र :स्वकर्म स्वाश्रमविहितकर्मानुष्ठानम् II3/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो कर्म अपने आश्रम के वास्ते शास्त्रों ने प्रतिपादन किये हैं उनके अनुष्ठान को स्वकर्म कहते हैं यहां पर कर्म शब्द से यम, नियम और प्रत्याहार इन तीनों को समझना चाहिए। क्योंकि इनका सब बर्णो के वास्ते समान सम्बन्ध है, और इन यमादिकों को योगशास्त्र में योग का अंग तथा ज्ञान का साधन भी माना है, और भी जो ज्ञान प्राप्ति में उपाय हैं, उनकों भी कहेंगेः-