सूत्र :विपर्ययभेदाः पञ्च II3/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अविद्या, अस्मिता राग द्वेष और अभिनिवेश यह पांच योगशास्त्रों में कहे हुये बंध के हेतु विपर्यय (मिथ्या ज्ञान) के अवान्तर भेद हैं। अनित्य, अशुचि, दुःख और अनात्म में नित्य, शुचि, सुख और आत्मबुद्धि करने का नाम अविद्या है। जिसमें आत्मा और अनात्मा का एकता मालूम होवे जैसे-शरीर के अतिरिक्त और कोई आत्मा नहीं, ऐसी बुद्धि का होना अस्मिता है-राग और द्वेष के लक्षण प्रसिद्ध ही हैं। मृत्यु से डरने का नाम अभिनिवेश है। यह पांचों बातें बद्ध जीव में होती हैं, और इनका होना ही बन्धन का हेतु है। अब बुद्धि को बिगाड़ने वाली अशक्तियों के भेद को कहते हैं-