सूत्र :वैराग्यादभ्यासाच्च II3/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सांसारिक पदार्थों के विराग अथवा धारणादि पूर्वोक्त तीन साधनों के अभ्यास से ज्ञान प्राप्त होता है। यहां चकार का अर्थ पूर्वार्थ का समुच्चय और आरम्भित जो ‘‘ज्ञानान्मक्तिः’’ इस विषय के प्रतिपादन की समाप्ति के वास्ते हैं। इससे आगे ‘‘बन्धो विपर्ययात्’’ इस पर विचार आरम्भ करते हैं-