सूत्र :महदुपरागाद्विपरीतम् II2/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मन के संयोग होने यदि मन में मिथ्याज्ञान के संस्कार हैं तों धर्मादिक विपरीत हो जाते हैं, अर्थात् अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य, अनैश्वर्य यह सब विपरीत हो जाते हैं। अब महत्व के कार्य अहंकार को दिखाते हैं।