सूत्र :नाकृतिव्यक्त्यपेक्षत्वाज्जात्यभिव्यक्तेः II2/2/67
सूत्र संख्या :67
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बिना आकृति और व्यक्ति के जाति का ज्ञान हो ही नहीं सकता, क्योंकि जब हम किसी को देखते हैं तो हमें सिवाय उसकी आकृति और स्थूल शरीर के और कोई वस्तु दिखती, इसलिए जाति के लक्षण हैं वे आकृति और व्यक्ति में ही रह सकते है।
व्याख्या :
प्रश्न -यदि हम आकृति और व्यक्ति को पदार्थ मान लें, जाति को कुछ न माने तो क्या आपत्ति हैं ?
उत्तर -यदि जाति कोई वस्तु न हो तो एक जगह पर घड़ा देखने से दूसरी जगह फिर घड़े का ज्ञान नहीं हो सकता। घड़े में जो धड़ापन है, वही हमको उसके घड़े होने का ज्ञान कराता हैं अब आचार्य अपना मत प्रकट करते हैं:-