सूत्र :सहचरणस्थान-तादर्थ्यवृत्तमानधारणसामीप्ययोगसाधनाधिपत्येभ्यो ब्राह्मणमञ्चकटराजस-क्तुचन्दनगङ्गाशाटकान्नपुरुषेष्वतद्भावेऽपि तदुपचारः II2/2/64
सूत्र संख्या :64
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . जैसे सहचरण में यष्टि से यष्टि वाला ब्राह्याण, स्थान में मच्च से मच्चस्थ पुरुष, तादथ्र्य में-कट से तृणविशेष, वृत्त में-यम से राजा, मान में-सेरभर सत्तू से, उतने तौल के सत्तू, धारण में-तुला चन्दन से तुला में धरा चन्दन, सामीप्य से-गडातीर, योग में-काले वस्त्र से काले वस्त्र, साधन में-अन्न से प्राण और आधिपत्य में-कुल या गोत्र, शब्द से उस कुल का मुख्य पुरुष ग्रहण किया जाता है। ऐसे ही लक्षण से जाति का व्यक्ति में उपचार किया जाता है। अतएव गोशब्द से गोत्व का ही ग्रहण करना चाहिए। अब आकृतिवादी आकृति को ही पदार्थ कहता हैं:-