सूत्र :तत्त्वभाक्तयोर्नानात्वस्य विभागादव्यभिचारः II2/2/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : विभाग दो प्रकार का है एक वास्तविक दूसरा काल्पनिक आकाश में जो घटाकाश और मठाकाश के विभाग किए जाते हैं, वे काल्पनिक हैं, न कि वास्तविक, क्योंकि वे घट और मठ के सम्बन्ध से कल्पित किए जाते हैं, इसी प्रकार आत्मा में सुख और दुःख भी मन के सम्बन्ध से माने जाते हैं, इसलिए वे मन के धर्म हैं, न कि आत्मा के। अभाव का नित्य होना सिद्ध नहीं होता, क्योंकि यदि आदिमान् होने पर भी अभाव को नित्य माना जावे तो इसका यह अर्थ होगा कि उसकी उत्पत्ति तो हैं, विनाश नहीं। यह असम्भव हैं, इसलिए अभाव नित्य नहीं हो सकता।
व्याख्या :
अभाव के काल्पनिक नित्य होने में एक हेतु वह भी है कि घट की उत्पत्ति से पहले जो घट का अभाव था, वह घट के उत्पन्न हो जाने से नाश हो जायगा और घट के नाश से जो अभाव उत्पन्न होगा, वह कारणवान न होगा, क्योंकि कारण भाव का होता है, अभाव का नहीं। अभाव तीनों कालों में रहने वाला और नित्य है। घट बनने से पहले भी घट का अभाव था, घट बनने पर भी घट से अतिरिक्त अन्य पदार्थों में घट का अभाव है, घट का अभाव है, घट के नाश होने पर भी घट का अभाव होगा। इसलिए घट के नाश होने पर घट के अभाव को कारणवान् बतलाना सरासर कल्पित हैं। शब्द के अनित्यत्व में और भी हेतु देते हैं:-