सूत्र :संतानानुमानविशेषणात् II2/2/17
सूत्र संख्या :17
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वादी ने जो कहा था कि जाति का ज्ञान भी इन्द्रियों से होता हैं, परन्तु वह नित्य हैं, इसलिए इन्द्रियग्राह्य होने के कारण शब्द भी अनित्य नहीं हो सकता, इसके उत्तर में प्रतिवादी कहता है कि हमारा यह आशय नहीं है कि केवल इन्द्रियग्राह्य होने से ही शब्द अनित्य है किन्तु वायु के धक्के और मुखादि अवयव की चेष्टा से शब्दसन्तति की उत्पत्ति होती हैं। इससे भी उसके अनित्य होने का अनुमान किया जाता है। तीसरे हेतु का खण्डन:-