सूत्र :अदृष्टद्वारा चेदसम्बद्धस्य तदसम्भवाज्जलादिवदन्नरे II6/61
सूत्र संख्या :61
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि अदृष्ट (प्रारब्ध) से प्राण को शरीर का अधिष्ठाता कहें दो भी योग्य नहीं, क्योंकि प्राण का जब प्रारब्ध के साथ कोई सम्बन्ध ही नहीं है, तो उसको हम अधिष्ठाता कैसे कह सकते हैं? जैसे अंकुर के पैदा होने में जल भी हेतु है, परन्तु बिना बीज के जल से अंकुर पैदा नहीं हो सकता, इसी तरह यद्यपि शरीर की अनेक त्रियायें प्राण से होती हैं तो भी प्राण बिना आत्मा के कोई त्रिया नहीं कर सकता।