सूत्र :विशिष्टस्य जीवत्वमन्वयव्यतिरेकात् II6/63
सूत्र संख्या :63
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो ईश्वर के गुणों से पृथक् शरीर युक्त है उसको जीव संज्ञा से बोलते हैं, इस बात को अन्वय-व्यतिरेक से जानना चाहिये अर्थात् जीव के होने से शरीर में बुद्धि का प्रकाश और न होने से बुद्धि आदि का अप्रकाश दीखता है।