सूत्र :गतिश्रुतेश्च व्यापकत्वेऽप्युपाधियोगाद्भोगदेश-काललाभो व्योमवत् II6/59
सूत्र संख्या :59
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आत्मा में जो गति सुनी जाती है उसको इस तरह से समझना चाहिए कि यद्यपि आत्मा शरीर में व्यापक है तथापि उस शरीर रूपी उपाधि के योग से अनेक तरह के भोग, देश और समयों का योग इसमें माना जाता है अर्थात् भोगों की प्राप्ति, देशान्तरगमन और प्रातः संध्या आदि का अतित्रम आत्मा ही में मालूम होता है, परन्तु आत्मा वास्तव में इनसे पृथक है, जैसे घट का आकाश। घट को उठाकर दूसरी जगह ले जाने से वह आकाश भी दूसरी जगह चला जाता है, इस बात को पहिले कह चुके हैं कि बिना जीव के सिर्फ वायु ही से शरीर का कार्य नहीं चलता, उस पर आचार्य अपना सिद्धान्त कहते हैं।