सूत्र :श्रुतिरपि प्रधानकार्यत्वस्य II5/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जगत् का उपादान कारण प्रकृति ही है इस बात को श्रुतियां भी कहती हैं। ‘अजामेको लोहितशुक्लकृष्ण बहृीः प्रजा सृजमानां स्वरूपः’ यह श्वेताश्वेतर उपनिषद् का वाक्य है, इसका यह अर्थ है कि जो जन्म रहित, सत्व, रज, तमोगुण रूप प्रकृति है वही स्वरूपाकार से बहुत प्रजारूप हो जाती है अर्थात् परिणामिनी होने से अवस्थान्तर हो जाती है और ईश्वर अपरिणामी और असंगी है। कोई ऐसा मानते हैं कि ईश्वर को अवद्या को अविद्या संग होने में न्धन में पड़ता है, और उसी के योग से यह संसार है, इस मत का खंडन करते हैं।