सूत्र :द्वयोरेकतरस्य वौदासीन्यमपवर्गः II3/65
सूत्र संख्या :65
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रकृति और पुरूष इन दोनों की आपस में उदासीनता का होना ही मुक्ति कहलाता है। दूसरा यह भी अर्थ हो सकता है, कि ज्ञानी औ अज्ञानी इन दोनों में से एक के वास्ते प्रकृति की उदासीनता ही को अपवर्ग मुक्ति कहते हैं।
प्रश्न- जबकि विवेक के कारण प्रकृति पुरूष को मुक्त कर देती है, तो और भी पुरूष विवेक के डर के मारे सृष्टि करने से विरक्त क्यों नहीं होते ?