सूत्र :विविक्तबोधात्सृष्टिनिवृत्तिः प्रधानस्य सूदवत्पाके II3/63
सूत्र संख्या :63
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब विविक्त बोध अर्थात् एकान्त ज्ञान हो जाता है, तबप्रकृति की सृष्टि निवृत्त हो जाती है जैसे रसोइया भोजन बनाकर निश्चित हो जाता है, फिर उसको कोई काम विशेष नहीं रहता। इसी तरह प्रकृति भी विवेक को उत्पन्न करके अपनी सृष्टि को निवृत्त कर देती है। आशय यह है कि ज्ञान होने से संसार छूट जाता है।
प्रश्न- जबकि एक को ज्ञान हुआ और उससे सृष्टि की निवृत्ति हो गई, तो फिर विशेष जीव गद्ध क्यों है? क्योंकि सृष्टि की निवृत्ति में बन्धन न रहना चाहिए।