सूत्र :अकार्यत्वेऽपि तद्योगः पारवश्यात् II3/55
सूत्र संख्या :55
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि प्रकृति और पुरूष दोनों अकार्य अर्थात् नित्य तथापि प्रकृति को ही सृष्टि करने का योग है, क्योंकि जो परवश् होगा वही तो कार्य को करेगा, इस विचार से प्रकृति में परवशता दीखती है।