सूत्र :न कारणलयात्कृतकृत्यता मग्नवदुत्थानात् II3/54
सूत्र संख्या :54
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कारण में लय जाने से भी कृतकृत्यता नहीं होती, क्योंकि जैसे मनुष्य जब जल में डूबता है तो कभी तो ऊपर आता है, और कभी नीचे को बैठ जाता है। इसी तरह जो मनुष्य कारण में लय हो गया है, कभी जन्म को प्राप्त होता है, कभी मरण को प्राप्त होता है, और ऐसा कहने से आचार्य का यह तात्पर्य नहीं है कि मुक्त जीव कभी जन्म को नहीं प्राप्त होता, क्योंकि प्रथम आचार्य जीव को नित्य मानते हैं, जब उसका कारण ही नहीं तो लय किसमें होगा। दूसरे जो डूबे हुए का दृष्टांत दिया, अशांति को पोषक दिया तथा इसमें पराधीनता दिखाई, किंतु मुक्त-जीव तो न अशांत है न पराए आधीन है। तीसरे यहां पर सृष्टि का प्रसंग चला आता है, किंतु जीव का विषय भी नहीं है, इसलिए अन्तःकरण के सुषुप्ति में प्रकृति में लय होने से तात्पय्र्य है।
प्रश्न- जबकि प्रकृति और पुरूष दोनों ही अनादि हैं, तो प्रकृति ही में सृष्टि का कर्तव्य क्यों माना जाता है?