सूत्र :अशक्तिरष्टाविंशतिधा तु II3/38
सूत्र संख्या :38
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अशक्ति अट्ठाईस प्रकार को हैं, वह प्रकार अब कहते हैं। ग्यारह इन्द्रियों के विघात हो जाने र्से यारह प्रकार की, और नौ प्रकार की तुष्टि, तथा आठ प्रकार अशक्ति सिद्धि से बुद्धि का प्रतिकूल होना- यह सब मिलकर अट्ठाईस प्रकार की अशक्ति बुद्धि में होती है। इन्द्रियों का विधात इस तरह होता है कि कान से सुनाई न देना, त्वचा में कोढ़ का हो जाना, आंखों से अन्धा हो जाना इत्यादि ग्यारह इन्द्रियों का विषय होना तथा तुष्टि आदि के जो भेद जिस प्रकार कहे हैं, उनसे बुद्धि का विपरीत होना, अशक्ति का लक्षण है। जब तक बुद्धि में अशक्ति नहीं होती तब तक अज्ञान भी नहीं होता। अब तुष्टि के भेद कहते हैं।