सूत्र :अधिकारित्रैविध्यान्न नियमः II1/70
सूत्र संख्या :70
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि प्रकृति सबका उपादान कारण है परन्तु प्रत्येक कार्य में जो तीन प्रकार के कारण माने जाते है अर्थात् (१) उपादान, (२) निमित्त और (३) साधारण इनकी भी व्यवस्था न रहेगी, क्योकि जब कुम्हार मिट्टी दण्डादि का कारण प्रकृति ही ठहरी तो इन तीन कारणों की अनावश्यकता होने से बहुत गोलमाल हो जायेगा जायेगा। इसमें हेतु यह है कि फिर कोई भी किसी का निमित्त व असाधारण कारण न रहेगा, अतएव जहां-जहां कारणत्व कहा जाये वहाँ-वहां प्रकृति को छोड़कर कहना चाहिए, क्योंकि प्रकृति तो सबका कारण है ही उसके कहने को कोई भी बावश्यकता नही है, जैसे- कुम्हार के पिता को घट का कारण कहना आवश्यक है, क्योंकि वह तो अन्यथासिद्ध है। यदि वही न होता तो कुलाल कहां से आता? परन्तु घट के बनने में कुलाल के पिता की कोई भी आवश्यकता नही है, ऐसा ही नवीन नैयायिका भी मानते है, कि कारणत्व प्रकृति को छोड़कर कहना चाहिए।