सूत्र :मुक्तिरन्तरायध्वस्तेर्न परः II6/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार कि मुक्ति का वादी ने पूर्व-पक्ष किया, उस प्रकार की मुक्ति को आचार्य नहीं मानते, किन्तु अन्तरायों के (विघ्नों के) ध्वंस (नाश) हो जाने के सिवाय और किसी प्रकार की मुक्ति आचार्य नहीं मानते।