सूत्र :तत्राप्यविरोधः II6/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो श्रुति आदिको का दोष प्रतिपादन किया वह योग्य नहींद्व क्योंकि वेदों में अनेक स्थलों पर मुक्ति की भी पुनरावृत्ति लिखी है कि मुक्ति फिर लौट आती है। शंकराचार्य ने भी इस श्रुति का अर्थ इस कल्प में लौटना माना हैं, इसलिए मुक्ति से फिर बंधता नहीं, ऐसा कहना योग्य नहीं हो सकता। दूसरा यह जो दोष कहा कि पुनर्बन्ध होने से बद्ध मुक्त इोनों बराबर हो आयेंगे सो भी योग्य नहीं क्योंकि जो मनुष्य रोगी है उसकी बराबरी नीरोगी के साथ किसी प्रकार नहीं हो सकती और जो नीरोगी है वह भी कालान्तर में रोगी हो सकता है परन्तु यह विचार करके यह भविष्य रोगी का व्यवहार नहीं कर सकते। इसलिये न तो मुक्त की पुनरावृत्ति मानने से श्रुति से विरोध प्राप्त होता है और न युक्ति से ही विरोध होता है।