सूत्र :न बीजान्नरवत्सादि-संसारश्रुतेः II5/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बीज और अंकुर के समान अविद्या और ईश्वर को मानें तो यह दोष प्राप्त होता है। ‘‘सदेव सोम्येदमग्र आसीत् एकमेवा-द्वितीयं ब्रह्य।’’ हे सौम्य! पहले यह जगत् सत् ही था एक ही अद्वितीय ईश्वर है, इत्यादि श्रुतियां एक ही ईश्वर को प्रतिपादन करती हैं और जगत् को सादि और ईश्वर को अद्वितीय कहती हैं। अगर उसके साथ अविद्या का झगड़ा लगाया जावे तो उक्त श्रुतियों से विरोध हो जायगा। यदि ऐसा कहा जाय कि हमारी अविद्या योग शास्त्र की-सी नहीं है किन्तु जैसे आपके मत में प्रकृति है, वेसी ही हमारे मत में अविद्या है, तो यह मत भी सत्य नहीं है।