सूत्र :तद्रूपत्वे सादित्वम् II5/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि अविद्या को जगत् रूप मानें अर्थात् जगत् ही अविद्या है, अविद्या में सादिपना आ जाता है, क्योंकि जगत् सादि है। इस वास्ते अविद्या कोई वस्तु नहीं है, उसी के बुद्धिवृत्ति का नाम अविद्या है, जो महर्षि पतंजलि ने कही है। और इस विषय में यह भी विचार होता, कि जब कपिलाचार्य के मत में सम्पूण कार्यों की विचित्रता का हेतु प्रकृति है, और वही प्रकृति सुख दुःखादिक का हेतु है, तो धर्माधर्म के मानने की क्या आवश्यकता है। अब इसी पर विचार करके धर्म की सिद्धि करते हैं।