सूत्र :तद्योगे तत्सिद्धावन्योन्याश्रयत्वम् II5/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि अविद्या के योग से संसार की सिद्धि मानी जाय, तो अन्योन्याधयत्व दोष प्राप्त होता है क्योंकि बिना ईश्वर के अविद्या संसार को नहीं कर सकती और ईश्वर बिना अविद्या के संसार नहीं बना सकता, यही दोष हुआ। यदि अविद्या और ईश्वर इन दोनों को एक कालिक (एक समय में होने वाले) अनादि मानें, जैसे बीज और अंकुर को मानते हैं, तो भी सत्य नहीं, क्योंकिः-