सूत्र :प्रात्यहिकक्षुत्प्रतीकारवत्तत्प्रतीकारचेष्टनात्पुरुषार्थत्वम् II1/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : नित्यप्रति क्षुधा लगती है उसकी निवृत्ति भोजन से हो जाती है। इसी प्रकार और दुःख भी प्राकृतिक वस्तुओं से दूर हो सकते है अर्थात् जैसे औषध से रोग की निवृत्ति हो जाती है अतएव वर्तवान काल के दुःख दृष्ट पदार्थों से दूर हो जाते है, इसी को पुरूषार्थ मानना चाहिये।