Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपने नेत्रों द्वारा देखा तथा कानों द्वारा सुने हुए में साक्ष्य देना उचित है तथा उसमें सत्य बोलने से धर्म व अर्थ की हानि नहीं होती।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. दो प्रकार से साक्षी होना सिद्ध होता है एक - साक्षात् देखने और दूसरा - सुनने से जब सभा में पूछें तब जो साक्षी सत्य बोलें वे धर्महीन और दण्ड के योग्य न होवें और जो साक्षी मिथ्या बोलें वे यथायोग्य दण्डनीय हों ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
आमने सामने होकर आँख से देखने और सुनने से साक्षि सिद्ध होती है। वहां न्यायसभा में पूछे जाने पर जो साक्षी सत्य सत्य कहता है, वह धर्म से हीन और जुर्माने का अधिकारी नहीं होता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ग्वाही आॅख से देखे की भी होती है और कान से सुने की भी जो साक्षी सत्य बोलता है वह धर्म और अर्थ से हारता नही ।