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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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CHAPTER HEADING
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
ऋषियों का भृगु से प्रश्न
1
भृगु का ऋषियों को उत्तर
2
त्रिविध कर्मो का और त्रिविध गतियों का कथन
3
मन कर्मों का प्रवर्तक
4
त्रिविध मानसिक बुरे कर्म
5
चतुर्विध वाचिक बुरे कर्म
6
त्रिविध शारीरिक बुरे कर्म
7
जैसा कर्म उसी प्रकार का भोग
8 To 9
त्रिदंडी कि परिभाषा
10 To 11
क्षेत्रज्ञ और भूतात्मा
12
फल का अनुभवकर्ता जीवात्मा
13 To 23
प्रकृति के आत्मा को प्रभावित करने वाले तीन गुण
24
जिस गुण कि प्रधानता वैसी ही आत्मा
25 To 26
आत्मा में रजोगुण कि प्रधानता कि प्रह्चान
27 To 28
आत्मा में सतोगुण कि प्रधानता कि प्रह्चान
29 To 30
सतोगुण को प्रत्यक्ष कराने के लक्षण
31
रजोगुण के लक्षण
32
तमों गुण के लक्षण
33 To 34
तमोगुणी कर्ण कि संक्षिप्त परिभाषा
35
रजोगुणी कर्ण कि संक्षिप्त परिभाषा
36
सतोगुणी कर्ण कि संक्षिप्त परिभाषा
37
तीन गुणों के प्रधान उद्देश्य व पारस्परिक श्रेष्ठता
38 To 39
तीन गुणों के आधार पर तीन गतियाँ
40
तीन गतियों के कर्म विद्या के आधार पर तीन गौण गतियाँ
41
तामस गतियों के तीन भेद
42 To 44
राजन गतियों के तीन भेद
45 To 47
सात्विक गतियों के तीन भेद
48 To 51
विषयों में आसक्त से और अधर्म सेवन से दुखमय जन्मों कि प्राप्ति
52
कर्मानुसार जीव को योनियों कि प्राप्ति
53 To 72
विषयों के सेवन से पाप योनियों कि प्राप्ति
73 To 74
पापियों को प्राप्त होने वाले दुःख
75 To 80
आसक्ति निरासक्ति के अनुसार फल प्राप्ति
81
नि:श्रेयकर कर्मों का वर्णन
82
६ नि:श्रेयकर कर्म
83
प्रवृत्त निवृत्त कर्मों का वर्णन
84 To 91
आत्मज्ञान इन्द्रिय संयम का कथन
92 To 93
वेदाभ्यास का वर्णन
94
वेद विरुद्ध शाश्त्र अप्रमाणिक
95 To 96
वेद से वर्ण आश्रम लोग काल आदि का ज्ञान
97
पंचभूत आदि सूक्ष्म शक्तियों का ज्ञान वेदों से
98
वेद सुखों का साधन है
99
वेदवेत्ता ही सफल राजा सेनापति व न्यायधीश हो सकता है
100
वेदज्ञान से परमगति कि और प्रगति
101 To 103
ताप से पाप भावना का नाश और विद्या से अमृत प्राप्ति
104
धर्म ज्ञान के लिए त्रिविध प्रमाणों का ज्ञान
105
वेदानुकुल तर्क से दर्म ज्ञान
106 To 107
अविहित धर्मों का विधान शिष्ट विद्वान करें
108
शिष्ट विद्वानों कि परिभाषा
109
तीन या दश विद्वानों कि धर्म निर्णायक परिषद्
110
धर्म परिषद् के १० सदस्य
111
धर्म परिषद् के ३ सदस्य
112
मूर्खों से धर्म निर्णय में प्रमाण
113
धर्म परिषद् का सदस्य कौन नहीं हो सकता
114
मूर्खों द्वारा निर्णीत धर्म से पापवृद्धि
115
निःश्रेयकर कर्मों का उपसंहार
116 To 117
ईश्वर दृष्टा अधर्म में मन नहीं लगाता
118
परमेश्वर ही सबका निर्माता फलदाता और उपश्य हिया
119
इन्द्रियों में आकाश आदि का ध्यान
120 To 121
परम सूक्ष्म परमात्मा को जाने
122
परमात्मा के अनेक नाम
123
सर्वान्तर्यामी परमात्मा ही संसार को चक्रवटी चलाता है
124
समाधि से ईश्वर एवं मोक्षप्राप्ति
125
इस शाश्त्र के अध्यन का फल
126