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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
--SHLOKE NUMBER--
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CHAPTER HEADING
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
विद्वानों द्वारा सेवित धर्म का वर्णन प्रारम्भ
1
सकामता – अकामता विवेचन
2 To 5
धर्म के मूल स्त्रोत और आधार
6
वेद सर्वज्ञानमय
7
आत्मानुकुल धर्म ग्रहण
8
श्रुति-स्मृति-प्रोक्त धर्म के अनुष्ठान का फल
9
श्रुति और स्मृति का परिचय
10
श्रुति-स्मृति का अपमान करने वाला नास्तिक है
11
धर्म के चार आधार रूप लक्षण
12
धर्म-जिज्ञासा में श्रुति परमप्रमाण और धर्मज्ञान के पात्र
13
वेदोक्त सब विधान धर्म है
14 To 15
इस शास्त्र के पढने के अधिकारी
16
ब्रह्मावर्त देश की सीमा
17
सदाचार का लक्षण
18
ब्रह्मार्षि देश की सीमा
19
सारे संसार के लोग ब्रह्मावर्त के विद्वानों से चरित्र की शिक्षा ग्रहण करें
20
मध्यदेश की सीमा
21
आर्यावर्त देश की सीमा
22
वह आर्यावर्त यज्ञिय देश है, उससे परे म्लेच्छ देश
23
द्विज कहाँ निवास करे
24
सृष्टि एवं धर्मोत्पति विषय की समाप्ति का कथन, वर्णधर्मों का वर्णन प्रारम्भ
25
संस्कारों को करने का निर्देश और उनसे लाभ
26
‘संस्कारों’ से बुरे संस्कारों का निवारण
27
वेदाध्ययन, यज्ञ, व्रत आदि से ब्रह्म से प्राप्ति
28
जातकर्म संस्कार का विधान
29
नामकरण संस्कार
30
वर्णानुसार नामकरण
31 To 32
स्त्रियों के नामकरण की विधि
33
निष्क्रमण और अन्नप्राशन संस्कार
34
मुण्डन संस्कार
35
उपनयन संस्कार का सामान्य समय
36
उपनयन का विशेष समय
37
उपनयन की अन्तिम अवधि
38
उपनयन से पतित व्रात्यों का लक्षण
39
व्रात्यों के साथ सम्बन्ध विच्छेद का कथन
40
वर्णानुसार मृगचर्मों का विधान
41
मेखला-विधान
42
मेखलाओं का विकल्प
43
वर्णानुसार यज्ञोपवित
44
वर्णानुसार दण्डविधान
45
दण्डों का वर्णानुसार मान
46
दण्डों का स्वरूप
47
भिक्षा-विधान
48
भिक्षा विधि
49
भिक्षा किन से मांगे
50
गुरु को भिक्षा-समर्पण
51
चारों दिशाओं की ओर मुख करके भोजन करने का फल
52
भोजन से पूर्व आचमन-विधान
53
भोजन सम्बन्धी आवश्यक विधान
54 To 57
आचमन विधि
58 To 63
मेखलादि की पुनर्ग्रहण-विधि
64
केशान्त संस्कार कर्म
65
स्त्रियों के लिए मन्त्ररहित संस्कारों का विधान
66 To 67
उपनयन विधि की समाप्ति एवं ब्रह्मचारी के कर्मों का कथन
68
उपनयन के पश्चात ब्रह्मचारी को शिक्षा
69
वेदाध्ययन की विधि
70
वेदाध्ययन से पहले गुरु को अभिवादन
71
गुरु को अभिवादन करने की विधि
72
अध्ययन के आरम्भ एवं समाप्ति की विधि
73
वेदाध्ययन के आद्यन्त में प्रणवोच्चारण का विधान
74 To 75
औ३म एवं गायत्री की उत्पति
76 To 77
औ३म एवं गायत्री के जप का फल
78 To 84
मानस जप की श्रेष्ठता
85 To 87
इन्द्रियसंयम का निर्देश
88
ग्यारह इन्द्रियों की गणना
89 To 91
ग्यारहवी इन्द्रिय मन
92
इन्द्रिय-संयम से प्रत्येक कार्य में सिद्धि
93
विषयों के सेवन से इच्छाओं की वृद्धि
94
विषय त्याग ही श्रेष्ठ है
95 To 96
विषयी व्यक्ति को सिद्धि नहीं मिलती
97
जितेन्द्रिय की परिभाषा
98
एक भी इन्द्रिय के असंयम से प्रज्ञाहानि
99
इन्द्रिय संयम से सब अर्थों की सिद्धि
100
संध्योपासन-समय
101
संध्योपासन का फल
102
सन्ध्योपासना न करने वाला शुद्र्वत
103
प्रतिदिन गायत्री जप का विधान
104
वेद, अग्निहोत्र आदि में अनध्याय नहीं होता
105 To 106
स्वाध्याय का फल
107
समावर्तन तक होमादि-कर्तव्य करने का कथन
108
पढाने योग्य विषय
109
प्रश्नादी के बिना उपदेश निषेध
110
दुर्भावना-पूर्वक प्रश्न-उतर से हानि
111
विद्या दान किसे न दें
112
कुपात्र को विद्या दान का निषेध
113
विद्यादान सम्बन्धी आख्यान एवं निर्देश
114 To 115
बिना पढाये वेदग्रहण का निषेध
116
गुरु को प्रथम अभिवादन
117
विप्र की श्रेष्ठता-अश्रेष्ठता
118
गुरु की शय्या और आसन पर न बैठे
119
बड़ों को अभिवादन से मानसिक प्रसन्नता
120
अभिवादन और सेवा से आयु, विद्या, यश, बल की वृद्धि
121
अभिवादन-विधि
122 To 124
अभिवादन का उत्तर देने की विधि
125
अभिवादन का उत्तर न देने वाले को अभिवादन न करें
126
वर्णानुसार कुशल प्रश्नविधि
127
दीक्षित के नामोच्चारण का निषेध
128
परस्त्री के नामोच्चारण का निषेध
129
पारिवारिक एवं सम्बन्धी जनों का अभिवादन
130 To 133
नागरिकों आदि से मैत्री-व्यवहार
134
बालक ब्राह्मण भी वृद्ध क्षत्रियों के पिता के समान
135
सम्मान के आधार
136 To 137
किस-किस के लिए मार्ग दें
138
राजा और स्नातक में स्नातक अधिक मान्य
139
आचार्य का लक्षण
140
उपाध्याय का लक्षण
141
पिता-गुरु का लक्षण
142
ऋत्विक का लक्षण
143
अध्यापक या आचार्य की महता
144
उपाध्याय, आचार्य, पिता, माता की तुलना
145
पिता से वेदज्ञाता आचार्य बड़ा होता है
146 To 147
आचार्य द्वारा प्रदत ब्रह्मजन्म स्थिर होता है
148
गुरु का सामान्य लक्षण
149
विद्वान बालक वयोवृद्ध से बड़ा होता है
150
उक्त विषय में आंगिरस का दृष्टांत
151 To 152
विद्वता के आधार पर बालक और पिता की परिभाषा
153
अवस्था आदि की अपेक्षा वेदज्ञानी के श्रेष्ठता
154
वर्णों में परस्पर श्रेष्ठता के आधार
155
अवस्था की अपेक्षा ज्ञान से वृद्धत्व
156
मुर्खता की निन्दा तथा मुर्ख का जीवन निष्फल
157 To 158
गुरु शिष्यों का व्यवहार
159
पवित्र मन वाला ही वैदिक कर्मों के फल को प्राप्त करता है
160
दूसरों से द्रोह आदि का निषेध
161
ब्राह्मण के लिए अपमान-सहन का निर्देश
162 To 164
द्विज के लिए वेदाभ्यास की अनिवार्यता
165
वेदाभ्यास परम तप है
166 To 167
वेदाभ्यास के बिना शुद्र्त्व प्राप्ति
168
द्वितीय जन्म का निरूपण
169 To 171
यज्ञोपवीत से पूर्व वेदमंत्रोच्चारण का निषेध
172 To 174
गुरुकुल में रहते हुए ब्रह्मचारी के पालनीय विविध नियम
175
ब्रह्मचारी के दैनिक नियम
176
मद्य, मांस आदि का त्याग
177
अंजन, छाता, जूता आदि धारण का निषेध
178
जुआ, निंदा, स्त्रीदर्शन आदि का निषेध
179
एकाकी शयन का विधान
180
स्वप्नदोष में प्रायश्चित
181
भिक्षा सम्बन्धी नियम
182
किनसे भिक्षा ग्रहण करें
183
किन किन से भिक्षा ग्रहण न करें
184
पापकर्म करने वालों से भिक्षा न लें
185
सायं प्रातः अग्निहोत्र का पुनः विशेष विधान
186
भिक्षा और यज्ञ न करने पर प्रायश्चित
187 To 188
ब्राह्मण-ब्रह्मचारी के लिए भिक्षा सम्बन्धी अपवाद
189 To 190
गुरु के समीप रहते ब्रह्मचारी की मर्यादाए
191
गुरु के सम्मुख सावधान होकर बैठे और खड़े हो
192
गुरु के आदेशानुसार चलें
193
गुरु से निम्न स्तर की वेशभूषा रखें
194
बातचीत करने शिष्टाचार
195 To 197
गुरु से निम्न आसन पर बैठे
198
गुरु का नाम न लें
199
गुरु की निन्दा न सुने
200
गुरु-निन्दा का फल
201
गुरु को कब अभिवादन न करे
202
साथ बैठने न बैठने सम्बन्धी निर्देश
203
गुरु के साथ कहाँ कहाँ बैठे
204
गुरु के गुरु से गुरुतुल्य आचरण
205
अन्य अध्यापकों से व्यवहार
206
गुरुपुत्र आदि से व्यवहार
207 To 209
गुरुपत्नियों से व्यवहार
210 To 211
युवती गुरुपत्नी के चरणस्पर्श का निषेध और उसमें कारण
212
युवती के चरण स्पर्श से हानि
213 To 214
स्त्रीवर्ग के साथ एकांतवास निषेध
215
युवती गुरुपत्नी के अभिवादन की विधि
216 To 217
गुरु-सेवा का फल
218
ब्रह्मचारी के लिए केश सम्बन्धी तीन विकल्प एवं ग्राम निवास का निषेध
219
प्रमादवश सोते रहने पर प्रायश्चित
220 To 221
संध्योपासन का विधान एवं विधि
222
स्त्री- शुद्रादी के उत्तम आचरण का अनुकरण करें
223
त्रिवर्ग सम्बन्धी मान्यताये
224 To 237
निम्नस्तर के व्यक्ति से भी ज्ञान-धर्म की प्राप्ति
238
उत्तम वस्तुओं का सभी स्थानों से ग्रहण
239 To 240
आपतिकाल में अब्राह्मण से विद्याध्ययन एवं उसके नियम
241 To 243
आजीवन गुरु-सेवा का फल
244
समावर्तन की इच्छा होने पर गुरुदक्षिणा का विधान एवं नियम
245
गुरुदक्षिणा में देय वस्तुए
246
गुरु के निधन पर गुरुदक्षिणा का विधान
247 To 248
आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का फल
249