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राष्ट्र के राजा, रानी और वीर -रामनाथ विद्यालंकार

rashtra ke raja rani aur veer1राष्ट्र के राजा, रानी और वीर -रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः कण्वः । देवता विश्वेदेवाः । छन्दः भुरिग् आर्षी अनुष्टुप् ।

प्रेतु ब्रह्मणस्पतिः प्रदेव्येतु सूनृत

अच्छा वीरं न परिधिसं देवा यज्ञं नंयन्तु नः॥

-यजु० ३३.८९

( प्र एतु ) उत्कर्ष प्राप्त करे ( ब्रह्मणः पतिः ) महान् राष्ट्र का पालक सम्राट्, ( प्र एतु ) उत्कर्ष प्राप्त करे ( देवी सूनृता ) शुभ गुणों से देदीप्यमान सत्यमधुरभाषिणी महारानी। ( देवाः ) विद्वान् लोग (नः यज्ञम् अच्छ) हमारे राष्ट्रयज्ञ में ( नर्यम् ) परुषाथी, ( पहिराधसम) पंक्तियों के सेवक (वीर) वीर को (नयन्तु ) प्राप्त कराएँ।

हम अपने राष्ट्र को महान् बनाना चाहते हैं। उसके लिए वेद का सन्देश है कि सम्राट्, प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति को ‘ब्रह्मणस्पति’ होना चाहिए। ब्रह्मन् शब्द निघण्टु में अन्न और धन का वाचक है। इससे सूचित होता है कि प्रधान राष्ट्रनायक जो भी हो उसके राष्ट्र में अन्न और धन भरपर रहना चाहिए, जिससे राष्ट्र में भुखमरी और निर्धनता फटकने भी न पावे। ‘ब्रह्म’ महान् परमेश्वर का नाम भी है। अत: राष्ट्रनायक को परमेश्वर का आराधक भी होना चाहिए, जिससे वह परमेश्वर से सद्गुणों और सत्कर्मों की प्रेरणा ग्रहण करता रहे। सम्राट् के साथ उसकी देवी महारानी भी राजोचित गुणोंवाली होनी चाहिए।’देवी’ शब्द क्रीडा, विजिगीषा, व्यवहार, द्युति, स्तुति, मोद, मद, स्वप्न, कान्ति एवं गति अर्थवाली दिवु धातु से निष्पन्न होने के कारण महारानी के इन गुणों को भी सूचित करता है। वह प्रत्येक कार्य को इतनी आसानी से करने की क्षमतावाली होनी चाहिए कि वह उसे खेल लगे। उसके अन्दर प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त करने की इच्छा होनी चाहिए। उसे व्यवहारकुशल होना चाहिए। राजनीति के ज्ञान की द्युति, स्तवनय की स्तुति, श्लाध्य कर्मों को करने से मोद और प्रसन्नता उसके अन्दर होनी चाहिए। अकरणीय कार्यों के प्रति प्रसुप्ति, कर्तव्यपालन के प्रति इच्छाशक्ति, जागरूकता, आशावादिता और प्रगतिशीलता उसमें रहनी चाहिए। सूनुता’ पद से उसकी वाणी की सत्यता और मधुरता सूचित होती है। राष्ट्रोत्थान इस पर भी निर्भर करता है कि राष्ट्र के वीर कैसे हैं। अतः मन्त्र कहता है कि विद्वानों का कर्तव्य है कि वे राष्ट्र में ऐसे वीरों का निर्माण करें, जो ‘नर्य’ हों, नरों के हितकर्ता एवं पुरुषार्थी हों, ‘पङ्किराधस्’ अर्थात् सहायता की इच्छुक जनपङियों के सेवक और कार्यसाधक हों। ऐसे वीर पुत्र जब राष्ट्रयज्ञ के अग्रणी बनेंगे तब निश्चय ही राष्ट्र प्रगति की ओर अग्रसर होगा, अन्य राष्ट्रों के मध्य उसकी स्थिति ऊँची होगी और अन्य राष्ट्रों का वह आदर्श तथा मार्गदर्शक हो सकेगा।

पाद-टिप्पणियाँ

१. देवी शुभगुणैर्देदीप्यमाना-द०भा० ३३.८९, देवी विदुषी सूनृतासत्यभाषणादिसुशीलत्वयुक्ता-द०भा० ३७.७

२. ब्रह्म=अन्न, धन, निघं० २.७, २.१०।।

३. पङ्केः समूहस्य राधः संसिद्धिर्यस्मात् तम्-० । राध संसिद्धौ, स्वादिः।।

राष्ट्र के राजा, रानी और वीर -रामनाथ विद्यालंकार