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अवैदिक कर्म – सूर्य अर्ध्य

पौराणिक अपने घर की छत पर 10 बजे सूर्य की दिशा पानी डालते हुए आर्यसमाजी को देख कर कहता हैं की आपलोग पूजा पाठ नहीं करते इससे धर्म की बड़ी हानि हो रही हैं।

आर्यसमाजी – मैंने ईश्वर की उपासना कई घंटे पहले कर ली हैं, मैं सूर्योदय से पहले जाग जाता हूँ।

पौराणिक – पर आप सूर्य को पानी नहीं चढ़ाते।

आर्यसमाजी – वेदो में क्या सूर्य की दिशा में पानी डालने को कहा गया हैं ? क्या तुम्हारा पानी सूर्य तक पहुँच जाता हैं ? क्या पानी डालने या न डालने से सूर्य को कोई फर्क पड़ता हैं ? क्या अन्य देशो में सूर्य ने चमकना बंद कर दिया जहाँ पानी नहीं डाला जाता ?

पौराणिक – अमुक बाबा ने कहा हैं की सूर्य हमें रौशनी देता हैं इसलिए हमें पानी चढ़ाना चाहिए।

आर्यसमाजी – तुम अँधेरे में बैठे थे तुम्हारे पिता ने घर में बिजली का कनेक्शन लेके , बल्ब लगा के अँधेरा दूर किया और अब तुम अपने पिता के स्थान पे बल्ब को धनयवाद दे रहे हो, कभी सृस्टि के रचियता की भी उपासना कर लिया करो।

पौराणिक – तुम्हारे कहने का मतलब हैं की सूर्य देवता नहीं हैं ?

आर्यसमाजी – हैं, पर चेतन नहीं हैं, जड़ हैं , और जड़ पूजा से कोई लाभ नहीं होता।

पौराणिक – नहीं हमने टीवी पर देखा हैं की सूर्य जागृत देवता हैं और अपने रथ पे सवार होके निकलता हैं और रौशनी देता हैं ।

आर्यसमाजी – टीवी पे तो यह भी कहा हैं की सूर्य एक तारा हैं और इस जैसे करोड़ो तारे इस ब्रह्माण्ड में हैं ।

पौराणिक – आप आर्यसमाजी लोगो की धर्म में आस्था नहीं हैं, आप लोग सिर्फ तर्क कर सकते हैं।

आर्यसमाजी – तुम्हारी वेदो में आस्था नहीं है , हमेशा वेद विरोधी काम करते हो और किस मुंह से खुद को धार्मिक कहते हो, क्रिसमस पे ईसाई के साथ अंडे वाला केक खाते समय या मज़ार पे चादर डालते समय तुम्हारी आस्था को क्या हो जाता हैं ? क्या तुम्हारे टीवी वाले बाबा ने ऐसा करने को कहा हैं या खुद करते हो ?

पौराणिक – समाज में रहने समय यह सब करना पड़ता हैं , आपलोग नहीं समझोगे।

आर्यसमाजी – तो आस्था , धर्म जैसी बाते क्यों करते हो , बोलो न जो मन में आता हैं वही करते हैं और तुम्हे धर्म से कोई लेना देना नहीं हैं।

पौराणिक उतरे चेहरे और खाली लौटे के साथ घर में घुस गया।

मूर्तिपूजा किसने और क्यों चलाई ? 🤔 [ देवीभागवत पुराण कहिन ]

🔥प्राप्ते कलावहह दुष्टतरे च काले न त्वां भजन्ति मनुजा ननु वञ्चितास्ते। 

धूर्तैः पुराणचतुरैहरिशंकराणां सेवापराश्च विहितास्तव निर्मितानाम्॥ [देवीभागवत ५।१९।१२] 

अर्थ – इस घोर कलयुग में पुराणों के बनानेवाले, धूर्त, चतुर लोगों ने शिव, ब्रह्मा, विष्णु आदि की पूजा अपने पेट भरने के लिए चलाई है। 

लीजिए, इस बात का भी निर्णय कर दिया कि इन देवताओं की पूजा क्यों चलाई है।

प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’

🔥 वैचारिक क्रांति के लिए “सत्यार्थ प्रकाश” पढ़े 🔥

🌻 वेदों की ओर लौटें 🌻

॥ओ३म्॥