Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
प्रेतशुद्धिं प्रवक्ष्यामि द्रव्यशुद्धिं तथैव च ।चतुर्णां अपि वर्णानां यथावदनुपूर्वशः ।।5/57

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अब यथाक्रम चारों वर्णों की प्रेत शुद्धि तथा द्रव्य शुद्धि को कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अब मैं चारो वर्णों की क्रमशः (पहले) मृत्यु के बाद की जाने वाली शुद्धि और (फिर) उसी प्रकार चारों वर्णों के लिए पदार्थों की शुद्धि को कहूंगा ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(प्रेतशुद्धि) मृत्यु सम्बन्धी शुद्धि के नियमों को (तथा एव च) और इसी प्रकार (द्रव्य-शुद्धिं च) द्रव्यों की शुद्धि के नियमों को भी (प्रवक्ष्यामि) कहूँगा, (यथावत्) ठीक ठीक (अनुपूर्वशः) क्रम-पूर्वक (चतुर्णां अपि वर्णानां) चारों वर्णों के।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS