Manu Smriti
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समुत्पत्तिं च मांसस्य वधबन्धौ च देहिनाम् ।प्रसमीक्ष्य निवर्तेत सर्वमांसस्य भक्षणात् ।।5/49

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मांस की प्राप्ति, जीवों का बन्धन तथा उनकी हिंसा (हत्या) इन बातों को देखकर सब मांस का भक्षण त्याग करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और मांस की उत्पत्ति जैसे होती है उसको प्राणियों की हत्या और बन्धन के कष्टों को देखकर सब प्रकार के मांस भक्षण से दूर रहे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
घृणित स्थानों से मांस की उत्पत्ति, और प्राणियों के वधबन्ध-रूप पापकर्म को देखकर मनुष्य को चाहिए कि वह सब प्रकार के मांस-भक्षण से हटा रहे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(मांसस्य) मांस (सं उत्पत्ति च) के उत्पन्न होने की रीति तथा (देहिनाम्) प्राणियों की (वध-बन्धौ) हत्या तथा पीड़ा को (प्रसमीक्ष्य) देखकर (सर्वमांसस्य) सब मांस के (भक्षणात्) भक्षण से (निवर्तेत) बचा रहे।
 
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