Manu Smriti
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नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसं उत्पद्यते क्व चित् ।न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ।।5/48

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जीवों की हिंसा बिना मांस प्राप्त नहीं होती और जीवों की हिंसा स्वर्ग-प्राप्ति में बाधक है, अतः माँस कदापि भक्षण न करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
प्राणियों की हिंसा किये बिना कभी मांस प्राप्त नहीं होता और जीवों की हत्या करना सुखदायक नहीं है इस कारण मांस नहीं खाना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु, प्राणियों की हिंसा किये बिना मांस कहीं नही मिलता, और प्राणिवध सुखदायक नहीं, इसलिए मांस न खाना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(प्राणिनां) प्राणियों की (हिंसा) हिंसा को (अकृत्वा) बिना किये (मांसं) मांस (कंचित्) कहीं भी (न उत्पद्यते) नहीं मिलता। (न च प्राणिवधः स्वग्र्यः) और प्राणियों का वध स्वर्ग का देने वाला नहीं है। (तस्मात्) इसलिये (मांसं) मांस को (विवजयेत्) त्याग दे।
 
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