Manu Smriti
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यद्ध्यायति यत्कुरुते रतिं बध्नाति यत्र च ।तदवाप्नोत्ययत्नेन यो हिनस्ति न किं चन ।।5/47

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य किसी का वध नहीं करता वह जिस कार्य का ध्यान करता है अथवा जिस कार्य के करने की इच्छा करता है उसको बिना प्रयास ही पाता है।
टिप्पणी :
श्लोक 46वाँ तथा 47वाँ अहिंसा का सर्वथा मानने वाला है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो व्यक्ति किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करता वह जिसका ध्यान करता है जिस काम को करता है और जहां धैर्य से मन लगाता है उसको सुगमता से प्राप्त कर लेता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो मनुष्य किसी भी निरपराध प्राणि को नहीं मारता, वह जो सोचता है, जो करता है, और जिस में नीयत रखता है, वह सब कुछ सहजयता प्राप्त कर लेता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः) जो (किंचन) किसी को भी (न हिनस्ति) नहीं मारता वह (अयत्नेन) सुगमता से ही (तत् अवाप्नोति) उस सबको प्राप्त कर लेता है (यत् ध्यायति) जिस पर वह ध्यान लगाता है, (यत् कुरुते) या जो काम करता है, (यत्र च धृति बघ्राति) या जिसमें वह दृढ़ता से मन लगाता है।
 
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