Manu Smriti
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यो बन्धनवधक्लेशान्प्राणिनां न चिकीर्षति ।स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखं अत्यन्तं अश्नुते ।।5/46

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य किसी जीव को बन्धन में रखने (पकड़ने), वध करने व क्लेश देने की इच्छा नहीं रखता है वह सबका देवेच्छु है अतएव वह अनन्त सुख भोगता है।
टिप्पणी :
श्लोक 46वाँ तथा 47वाँ अहिंसा का सर्वथा मानने वाला है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो व्यक्ति प्राणियों के बन्धन में डालने, वध करने, उनको पीड़ा पहुँचाने की इच्छा नहीं करता वह सब प्राणियों का हितैषी बहुत अधिक सुख को प्राप्त करता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसके विपरीत जो प्राणियों को बलात्कार बांधने व मारने का क्लेश नहीं देता, वह सब प्राणियों का हितचिन्तक होकर अत्यन्त सुख को भोगता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यः) जो (प्राणिनां) प्राणियों के (बन्धन-बध-क्लेशान् न चिकीर्षति) कैद करने, मारने या पीड़ा देने की इच्छा नहीं करता। (स सर्वस्य हित प्रेप्सुः) वह सब का हितचिन्तक है। (सुखं अत्यन्तं अश्नुते) और बहुत सुख को पाता है।
 
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