Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो जीव वध योग्य नहीं है उनको जो कोई अपने सुख के निमित्त मारता है वह जीवित दशा में भी मृतक तुल्य है वह कहीं भी सुख नहीं पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो व्यक्ति अपने सुख की इच्छा से कभी न मारने योग्य प्राणियों की हत्या करता है वह जीते हुए और मरकर भी कहीं भी सुख को प्राप्त नहीं करता ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो अहिंसक प्राणियों को अपने सुख की इच्छा से मारता है, वह जीता हुआ और मरा हुआ, कहीं भी सुख को नहीं पाता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः) जो (आत्म-सुख-इच्छया) अपने सुख की इच्छा से (अहिंसकानि भूतानि) निरपराध जीवों को (हिनस्ति) मारता है, (स जीवन् च मृतः च एव) वह जीता भी मुर्दा है क्योंकि दूसरे प्राणियों के दुःख का अनुभव नहीं कर सकता। (न कंचित् सुखमेधते) वह कहीं सुख को नहीं पाता।