Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गृह में, गुरु के स्थान में व वन (जंगल) में बसकर ब्राह्मण वेदविरुद्ध जीव हिंसा आपद समय में भी न करें।
टिप्पणी :
यज्ञ में पशुवध वाममार्गियों ने सम्मिलित किया है अन्यथा वेदों में तो यज्ञ के अर्थ में अश्वर शब्द आता है जिसका अर्थ यह है कि जिसमें कहीं हिंसा न हो। उसका यही प्रमाण है कि विश्वामित्र ने हिंसा के भय से अपने यज्ञ में स्वयम् राक्षसों को नहीं मारा वरन् रक्षा के निमित्त रामचन्द्र को बुलाया।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(गृहे) गृहस्थाश्रम में (गुरौ) आचार्य कुल अर्थात् ब्रह्मचर्य आश्रम में (अरण्येवा) अथवा वानप्रस्थाश्रम में (निवसन्) रहता हुआ (आत्मवान् द्विजः) आत्म-गौरवशील द्विज (आपदि अपि) कष्ट पड़ने पर भी (अवेदविहितां हिंसां न समाचरेत्) वेद विरुद्ध हिसा को न करें। अर्थात् जिन जिन स्थानों पर दूसरों को पीड़ा देना शास्त्रों में बताया है उन उनको छोड़कर अन्यत्र कभी किसी को पीड़ा न दें। शास्त्र में जिन स्थानों पर पीड़ा देना विहित है वह इस प्रकार है:- दुराचार से बचाने के लिये माता-पिता तथा आचार्य बालकों तथा शिष्यों को दण्ड दें। राजा दुष्टों को दण्ड दे। जिन पशुओं से मृत्यु का भय हो उनको मारे।