Manu Smriti
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अनेन विप्रो वृत्तेन वर्तयन्वेदशास्त्रवित् ।व्यपेतकल्मषो नित्यं ब्रह्मलोके महीयते ।।4/260

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद तथा शास्त्र का ज्ञाता ब्राह्मण उपरोक्त रीति से रहा करे तो सब पापों से छूटकर सदैव ब्रह्मलोक में पूजने योग्य है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वेदशास्त्र का ज्ञाता द्विज इस जीविका या व्यवहार से वर्ताव करता हुआ पाप रहित होकर सदा ब्रह्मलोक में रहकर आनन्द को प्राप्त करता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वेद शास्त्रवित् विप्रः) वेद और शास्त्र का जानने वाला विद्वान् (अनेन वृत्तेन वर्तयन्) इस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करता हुआ (व्यपेतकल्मषः) पाप को क्षीण करता हुआ (नित्यं) सदा (ब्रह्मलोके महीयते) ब्रह्मलोक में बढ़ाई पाता है।
 
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