Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
प्रतिदिन एकान्त में बैठकर अकेला अर्थात् स्वयं अपनी आत्मा में अपने कल्याण की बातों का चिन्तन करे क्यों कि एकाकी चिन्तन करने वाला व्यक्ति अधिकाधिक कल्याण को प्राप्त करता जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
७०-इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह नित्यप्रति एकान्त स्थान में एकाकी बैठकर आत्म-हित का चिन्तन किया करे। एवं, एकाकी आत्म-चिन्तन करने वाला मनुष्य परम कल्याण को प्राप्त होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एकाकी चिन्तयेत् नित्यं) नित्य अकेला चिन्तन करें। (विविक्ते हितं आत्मनः) अपने हित की विवेचना करता हुआ (एकाकी चिन्तयानः हि परं श्रेयः अधिगच्छति) अकेला चिन्तन करके ही परंपद को पाता है।