Manu Smriti
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वाच्यर्था नियताः सर्वे वाङ्गूला वाग्विनिःसृताः ।तांस्तु यः स्तेनयेद्वाचं स सर्वस्तेयकृन्नरः ।।4/256

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जितने अर्थ हैं सो सब वाणी में रहते हैं और वाणी इन सबकी मूल है, यह सब वाणी द्वारा निकलते हैं उस वाणी को जिसने चुराया वह सब वस्तुओं का चुराने वाला हुआ।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस वाणी में सब व्यवहार निश्चित हैं वाणी ही जिनका मूल और जिस वाणी ही से सब व्यवहार सिद्ध होते हैं जो मनुष्य उस वाणी को चोरता अर्थात् मिथ्याभाषण करता है वह जानो सब चोरी आदि पाप ही को करता है, इसलिए मिथ्याभाषण को छोड़ने सदा सत्यभाषण ही किया करे ।
टिप्पणी :
‘‘परन्तु यह भी ध्यान में रखे कि जिस वाणी में अर्थ अर्थात् व्यवहार निश्चित होते हैं, वह वाणी ही उन का मूल और वाणी ही से सब व्यवहार सिद्ध होते हैं, उस वाणी को जो चोरता अर्थात् मिथ्याभाषण करता है, वह सब चोरी आदि पापों का करने वाला है ।’’ (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि सब व्यवहार वाणी में नियत हैं, वाणी ही उनक मूल है और वाणी ही से सिद्ध होते हैं। अतः, जो उस वाणी को चुराता है, अर्थात् मिथ्याभाषण करता है, वह मनुष्य मानो सब प्रकार की चोरियें करने वाला महापापी है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वाचि सर्वे अर्थाः नियताः) वाणी में ही सब अर्थ नियत है। (वाक् मूला वाक् विनिःसृताः) सब का मूल वाणी है। वाणी से ही सब निकले हैं। (तां वाचं) उस वाणी को (यः तु स्तेनयेत्) जो चुरावे (स सर्वस्तेयकृत् नरः) वह पुरुष सब चोरियों का करने वाला है। तात्पर्य यह है कि संसार के सब काम बोलकर ही चलते हैं इसलिये बोली के द्वारा किसी को धोखा देना उचित नहीं है।
 
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Comment By: omprakash kushwaha
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