Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो व्यक्ति स्वयं अन्यथा होते हुए सज्जनों में अन्यथा - कुछ का कुछ बतलाता है वह लोके में पापी माना जाता है, क्यों कि वह अपनी आत्मा को चुराने वाला चोर है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
६९-जो मनुष्य अपने असली स्वरूप को छिपाकर अन्यथा रूप से सज्जनों को जतलाता है, वह संसार में बड़ा भारी पापी गिना जाता है। क्योंकि वह ऐसा भयंकर चोर है जोकि अपने आत्मा को ही अपहरण करता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः अन्यथा सन्तं आत्मानं अन्यथा सत्सु भाषते) जो जैसा है उसके विपरीत अपने को प्रकट करता है (स लोके पाप कृत्तमः) वह संसार में सबसे बड़ा पापी (स्तेनः आत्मापहारकः) चोर और आत्मघाती है।