Manu Smriti
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यादृशोऽस्य भवेदात्मा यादृशं च चिकीर्षितम् ।यथा चोपचरेदेनं तथात्मानं निवेदयेत् ।।4/254
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
 
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