Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रारंभ किये हुये कार्य को दृढ़ चित्त से समाप्त करने वाला, दयालु और क्रूर अत्याचारी के विरोध को सहनशीलता इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को वश में करना) और विषयों से उनको अवरुद्ध करने वाला, अधर्म पुरुषों का परित्याग कर उत्तम पुरुषों से सम्बन्ध करने वाला, आत्महत्या तथा जीव हत्या (किसी जीव का हनन करना) न करने वाला सुख को प्राप्त करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. सदा दृढ़कारी कोमल स्वभाव जितेन्द्रियः हिंसक, क्रूर, दुष्टाचारी पुरूषों से पृथक् रहने हारा धर्मात्मा मन को जीत और विद्यादि दान से सुख को प्राप्त होवे ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
६८-अतः, मनुष्य को चाहिए कि वह द्ढ़कारी, कोमल स्वभाव, जितेन्द्रिय, हिंस्रक क्रूर दुष्टाचारी पुरुषों से पृथक् रहने वाला, तथा किसी को भी न सताने वाला धर्मव्रती बनकर इन्द्रिय-दमन और विद्यादि दान से सुख को प्राप्त होवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(दृढ़कारी) धृतिशील, (मृदुः) नम्र, (दुर्दान्तः) कठिनाइयों को सहन करने वाला (क्रूर + आचारः असंवसन्) दुष्ट लोगों के साथ न रहता हुआ (अहिंस्रः) किसी प्राणी को दुःख न देता हुआ। (दम दानाभ्यां) दम और दान के द्वारा (जयेत् स्वर्गं) स्वर्ग को प्राप्त करें। (तथा व्रतः) ऐसा आचरण करने वाला।