Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
चौपायों की रक्षा करना, दान देना, यज्ञ करना, वेद पढ़ना, व्यापार करना, ब्याज लेना, खेती (कृषि) करना, ये सात कर्म वैश्यों के लिये नियत किये हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वैश्य के कर्म -
‘‘पशुरक्षा गाय आदि पशुओं का पालन वर्धन करना, दान विद्याधर्म की वृद्धि करने कराने के लिए धनादि का व्यय करना इज्या अग्निहोत्रादि यज्ञों का करना अध्ययन वेदादि शास्त्रों का वणिक्पथ सब प्रकार के व्यापार करना कुसीद एक सैंकड़े में चार, छः, आठ, बारह , सोलह वा बीस आनों से अधिक ब्याज और मूल से दूना अर्थात् एक रूपया दिया हो तो सौ वर्ष में भी दो रूपये से अधिक न लेना और न देना कृषि खेती करना वैश्यस्य ये वैश्य के कर्म हैं ।’’
टिप्पणी :
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
‘‘अध्ययनम् वेदादि शास्त्रों का पढ़ना इज्या अग्निहोत्रादि यज्ञों का करना दानम् अन्नादि का दान देना, ये तीन धर्म के लक्षण और पशूनां रक्षणम् गाय आदि पशुओं का पालन करना उनसे दुग्धादि का बेचना वणिक् पथम् नाना देशों की भाषा, हिसाब, भूगर्भविद्या, भूमि, बीज आदि के गुण जानना और सब पदार्थों के भावाभाव समझना कुसीदम् ब्याज का लेना कृषिमेव च खेती की विद्या का जानना, अन्न आदि की रक्षा, खात और भूमि की परीक्षा, जोतना, बोना , आदि व्यवहार का जानना, ये चार कर्म वैश्य की जीविका ।’’
(सं० वि० गृहाश्रम प्रक०)
‘‘सवा रूपये सैंकड़े से अधिक, चार आने से न्यून ब्याज न लेवें न देवें । जब दूना धन आ जाये, उससे आगे कौड़ी न लेवे, न देवे । जितना न्यून ब्याज लेवेगा उतना ही उसका धन बढ़ेगा और कभी धन का नाश और कुसन्तान उसके कुल में न होंगे ।’’
(सं० वि० गृहाश्रम प्रक० में ऋ० दया० की टिप्पणी)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पशूनां रक्षणम्) पशु-पालन, (दानम्) दान, (इज्या) यज्ञ (अध्ययनम् एव च) और पढ़ना (वणिक् पथम्) व्यापार, (कुसीदं च) और लेन देन, (वैश्यस्य) वैश्य के धर्म हैं। (कृषिम् एव च) और खेती।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गाय आदि पशुओं का पालन बर्धन करना, विद्या धर्म की वृद्धि करने कराने के लिए धनादि का व्यय करना, अग्निहोत्रादि यज्ञों का करना, वेदादि शास्रों का पढ़ना, सब प्रकार के व्यापार करना, एक सैंकड़े में चार छह आठ सोलह व बीस आनों से अधिक व्याज और मूल से दूना अर्थात् एक रुपया दिया हो तो सौ वर्ष में भी दो रुपए से अधिक न लेना और न देना, तथा खेती करना, ये वैश्य के कर्म अदिष्ट किये।१
टिप्पणी :
१. व्याज सम्बन्धी उपर्युक्त स्पष्टीकरण स्वामी जी ने दसवें अध्याय में आए ‘वशिष्ठविहितां’ तथा ‘कुसीदबृद्धिर्द्वैगुण्यं’ श्लोकों के आधार पर किया है।
संस्कारविधि में स्वामी जी ने ‘वणिक्पथं’ की विस्तृत व्याख्या ‘‘नाना देशों की भाषा हिसाब भूगर्भविद्या भूमि बीज आदि के गुण जानना’’ और कृषि की ‘‘खेती की विद्या जानना, अन्नादि की रक्षा, खाद और भूमि की परीक्षा, जोतना बोना आदि व्यवहार का जानना’’ की है।