Manu Smriti
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तदण्डं अभवद्धैमं सहस्रांशुसमप्रभम् ।तस्मिञ् जज्ञे स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः । ।1/9
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तब वह बीज स्वर्ण और सू्य्र्य के समान अष्ठाकार बन गया, फिर उससे ब्रह्माजी अर्थात् वेदों के ज्ञाता अयोनिज ऋषि जो समग्र सृष्टि के उत्पन्न करने वाले हैं, अपने आप उत्पन्न हुए।
 
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