Manu Smriti
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उत्तमानुत्तमानेव गच्छन्हीनांस्तु वर्जयन् ।ब्राह्मणः श्रेष्ठतां एति प्रत्यवायेन शूद्रताम् ।।4/245

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उत्तम पुरुषों से सम्बन्ध करके तथा अधम पुरुषों का परित्याग करके ब्राह्मण मान मर्यादा प्राप्त करता है और दोष लगने से शूद्र के समान होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(उत्तमान् उत्तमान् गच्छन्) उत्तम उत्तम पुरुषों से सम्बन्ध रखता हुआ (हीनान् हीनान् च वर्जयन्) और नीचों से अलग रहता हुआ (ब्राह्मणः श्रेष्ठताम् एति) ब्राह्मण श्रेष्ठता को पा जाता है। (प्रत्यावायेन) इससे विपरीत चलने से (शूद्रताम्) शूद्रत्व को प्राप्त होता है।
 
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