Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. किन्तु जो पुरूष धर्म ही को प्रधान समझता जिसका धर्म के अनुष्ठान से कत्र्तव्य पाप दूर हो गया, उस को प्रकाशस्वरूप और आकाश जिसका शरीरवत् है उस परलोक अर्थात् परमदर्शनीय परमात्मा को धर्म ही शीघ्र प्राप्त कराता है ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो पुरुष धर्म ही प्रधान, समझता है, और धर्मानुष्ठान से जिस के पाप दूर हो गये हैं, उसको धर्म, प्रकाशस्वरूप तथा आकाश ही जिस का शरीरवत् है, उस परम दर्शननीय परमात्मा के पास शीघ्र प्राप्त करा देता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तपसा हतकिल्विषम्) तप के द्वारा पाप नष्ट हो गये हैं जिसके ऐसे (धर्मप्रधानं पुरुषं) धर्मात्मा पुरुष को (भास्वन्तं स्वशरीरिणाम्) जो ब्रह्मा के समान तेजोमय हो गया (आशु परलोकं नयति) धर्म शीघ्र ही परलोक को ले जाता है।