Manu Smriti
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तस्माद्धर्मं सहायार्थं नित्यं संचिनुयाच्छनैः ।धर्मेण हि सहायेन तमस्तरति दुस्तरम् ।।4/242

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अतएव अपने सहायतार्थ धर्म को सदैव करता रहे, क्योंकि धर्म ही की सहायता से भवसागर से पार होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. उस हेतु से परलोक अर्थात् परजन्म में सुख और जन्म के सहायार्थ नित्य धर्म का संचय धीरे - धीरे करता जाये क्यों कि धर्म ही के सहाय से बड़े - बड़े दुस्तर दुःखसागर को जीव तर सकता है । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह परजन्म और इस जन्म में सहायतार्थ नित्य धर्म का संचय धीरे-धीरे करता रहे। क्योंकि धर्म को ही सहायता से मनुष्य बड़े-बड़े दुस्तर दुःखसागर को तर जाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तस्मात्) इसलिये (सहायार्थं) परलोक की मदद के लिये (नित्यं) सदा (शनैः) धीरे-धीरे (धर्मं संचिनुयात्) धर्म का संचय करें। (धर्मेण हि सहायेन) धर्म की सहायता से ही (दुस्तरं तमः तरति) कठिन अन्धकार को पार कर जाता है।
 
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