Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
लकड़ी और मिट्टी के ढेले की नाईं बान्धव वा जाति सम्बन्धी मृत शरीर को जलाकर विमुख हो जाते हैं अर्थात् चले जाते हैं, केवल धर्म ही साथ जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब कोई किसी का सम्बन्धी मर जाता है उसको मिट्टी के ढेले के समान भूमि में छोड़कर पीठ दे बन्धुवर्ग विमुख होकर चले जाते हैं, कोई उसके साथ जाने वाला नहीं होता, किन्तु एक धर्म ही उसका संगी होता है ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जब कोई सम्बन्धी मर जाता है तो लाश को लकड़ी या मट्टी के ढेले की तरह भूमि में छोड़कर पीठ दे बन्धुवर्ग विमुख होकर चले जाते हैं और कोई उसके साथ जाने वाला नहीं होता, किन्तु केवल धर्म ही उसका संगी होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(मृतं शरीरं) मरे हुये शरीर को (काष्ठलोष्ठसमं) काठ या ढेले के समान (क्षितौ) भूमि में (उत्सृज्य) छोड़कर (बान्धवाः विमुखाः यान्ति) रिश्तेदार लौट जाते हैं। (धर्मः त अनुगच्छति) धर्म ही उसके साथ जाता है।